सत्य समझने का विषय है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महराज
Truth is a Matter of Understanding
Truth is a Matter of Understanding: चड़ीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में बड़ी ही धूमधाम से पर्यषण महापर्व आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में चल रहे है आज प्रातः कालीन श्री जी का प्रथम अभिषेक / शांतिधारा करने का सौभाग्य को करुण जैन चंडीगढ़ प्राप्त हुआ। उसके पश्चात् संगीतमय पूजन वा विधान को बाल ब्र. आशीष भैया (पुण्यांश) के. द्वारा सम्पन्न हुई। फिर परम पूज्य आचार्य श्री ने मंगल प्रवचन में कहा कि हे धर्म को धारण करने वाली भव्य आत्माओं! कोध, मान, माया और लोम इन 4 कषायों को जीतकर क्षमा का भाव, विनय का भाव, परिणामों में सरलता और आत्मा की पवित्रता को प्राप्त करने वाला व्यक्ति विशेष ही उत्तम सत्य धर्म को धारण कर सकता है। आज उत्तम सत्य का दिन है सत्य को कहा नहीं जाता है इसका तो अनुभव किया जाता है जैसे हमने रसगुल्ला खाया, अब बताओ कि वह कैसा है तो वचनों से जो कहा जा रहा है वह सत्य भी हो सकता, लेकिन जिसका अनुभव किया जाता है सत्य है इसलिए सत्य अनुभव का विषय है। यह जानकारी श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी
सत्य की सामान्य समझ जो हम जानते है वह तथ्यों को ज्यों का त्यों कह देना है लेकिन जैन धर्म के अनुसार सत्य का अर्थ यही तक सीमित नहीं है सत्य धर्म सर्वधर्मों में प्रधान है सत्य पृथ्वी तल पर सबसे श्रेष्ठ विधान है। सत्य संसार समुद्र को पार करने के लिए पुल के समान है और यह सब जीवों के मन को सुख देने वाला है। उत्कृष्ट ज्ञान को धारण करने वाले मुनियों को प्रथम तो बोलना ही नहीं चाहिए। यदि बोलें तो ऐसा वचन बोलना चाहिए, जो समस्त मनुष्यों / प्राणियों का हित करने वाला हो, परिमित हो, अमृत के समान प्रिय हो और सर्वथा सत्य हो, किन्तु जो वचन जीवों को पीड़ा देने वाला और कड़वा हो, उस वचन की अपेक्षा मौन साधना ही अच्छा है।
एक बार बोला गया असत्य अनेक बार के सत्य को भी झूठ कर देता है इसलिए झूठ को सर्वथा त्याग कर, सत्य धर्म धारण करने वाला और मीठे, हितकारी सिमित वचन ही बोलता है। सत्य कड़वा नहीं होता, कड़वा उन्हें लगता है जिनके दिल में झूठ बैठा होता जाता है। सत्य धर्म को सर्वधर्मो महान माना जाता है। सत्य हमें सब कुछ दिखाता है असत्य हमें खुद को भी नहीं दिखाता सज्जनों के साथ साधू वचन बोलना ही सत्य है।
जिसकी वाणी में वा जीवन में सत्य आ जाता है वह संसार सागर से पार हो जाता है जीवन में वे ही मनुष्य धन्य है जो सत्य धर्म को, भाषा समिति को, वचन गुप्ति को तथा सत्य भावना को और सत्य महाव्रत या अणुव्रत का पालन करते हैं| यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी ने दी
यह पढ़ें:
संतोष धारण से सुख की प्राप्ति: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज